'मेरी सोने की गुड़िया' |
चिड़िया
चिड़िया...
चिड़िया...
फुर्र..फुर्र.....फुर्र.. फुर्र
आँगन में आई चिड़िया..
देखो तुम्हारे लिए...
देखो तुम्हारे लिए...
ओ मेरी सोने की गुड़िया..
अरे! अरे!....अरे! अरे!
फुदक फुदक कर चले..
ठुमक ठुमक के मुड़े..
फुदक फुदक कर चले..
ठुमक ठुमक के मुड़े..
फुर्र..फुर्र.....फुर्र.. फुर्र
देखो देखो
चिड़िया चिड़िया
आँगन में आई चिड़िया..
तुम्हारे लिए ओ सोने की गुड़िया..
देखो देखो..
कैसे दुबक दुबक के
दाना मुह में धरे..
चोंच को भरे
अरे!अरे!अरे!अरे!
पास इसके जो तुम जाओगी
ये डर जायेगी...
झट से उड़ अपने घर जाएगी....
फुर्र..फुर्र.....फुर्र.. फुर्र
अरे! करनी है जो दोस्ती
उसको फिर बुलाओ तुम...
दाना आँगन में रोज थोडा
बिखराओ तुम...
थोडा बनके सयानी..
कटोरे में एक रक्खो पानी...
चिड़िया! चिड़िया!.... अरे! अरे!
फिर पंख फैलाये आएगी
सुन्दर नृत्य अपना
वो तुम्हे सिखायेगी..
और एक दिन...
ओ मेरी सोने की गुड़िया...
जब बड़ी हो जाना तुम...
पंख चिड़िया के लगाके..
जब बड़ी हो जाना तुम...
पंख चिड़िया के लगाके..
उड़ जाना तुम..
नई दुनिया अपनी..
नई दुनिया अपनी..
बसाना तुम ...!!
- ''कृष्णा मिश्रा''